Friday, May 7, 2021

"चलो इस कोरोना को हराया जाए"

 कोरोना से लड़ रहे दोस्तों की हिम्मत बढ़ाया जाए ,

किसी गरीब को दो वक्त की रोटी खिलाया जाए ,

दूर रह कर ही दोस्ती यारी , रिश्तेदारी निभाई जाए ,

घर मे बंद रहकर चलो कोरोना को हराया जाए || 


बंद है स्कूल , निराश परेशान है माँ -बाप , 

बच्चों के भविष्य पर ये कैसा है अभिसाप ? 

चलो उन बच्चों को कुछ नया सिखाया जाये , 

घर मे बंद रहकर चलो कोरोना को हराया जाए || 


PPE किट मे दिन रात जूझ रहे है  योद्धाओं को सलाम , 

"मास्क है जरूरी" सब follow करें  ये सरकारी पैगाम , 

दिन रात  ड्यूटी कर रहे वीरों को और न थकाया जाये , 

घर में बंद रहकर चलो कोरोना को हराया जाये ||


बन गयी है वैक्सीन  बस कुछ दिनो की बात है , 

हारेगा यह शैतान , हम सबको ये विश्वास है  , 

देश का नाम बदनाम होने से बचाया जाये , 

घर मे बंद रहकर चलो कोरोना को हराया जाये ||

घर मे बंद रहकर चलो कोरोना को हराया जाये ||

Wednesday, February 15, 2017

हाँ मैं कोयला हूँ !!

हाँ  मैं  कोयला हूँ !
 काला बदसूरत पत्थर का ढेला हूँ !

नही आता मुझे हीरे जैसा चमकना ,
मेरे नसीब मे नही सोने जैसा दमकना ,
नही बन पाया मैं मोती सा चिकना
मैं  तो क्षण भंगुर  हूँ मेरी किस्मत मे बस टूटना घिसना पिसना |
 हाँ मैं कोयला हूँ ,
काला बदसूरत पत्थर का ढेला हूँ |

लोहा अपनी कठोरता अपनी उपयोगिता पर इतराता है ,
सच है , इससे ज्यादा कोई और खनिज न काम आता है |
मगर क्या कभी झांक कर देखा है इन लौह इस्पात के कारखानों में ?
खुद को जला -तपाकर फौलादी स्टील बनाने वाला मैं ही तो हूँ |
हाँ मैं कोयला हूँ ,
काला बदसूरत पत्थर का ढेला हूँ |

क्या हुआ हीरा बनकर मैं मुकुटों में सज नही पाया ?
क्या हुआ जो मालाओं में गुथकर रानियों के गले में न लहराया ?
क्या हुआ जो नीलम पन्ना बनकर उँगलियों में न टिमटिमाया ,
क्या हुआ जो निर्मल श्वेत चाँदी की पायलों मे न बज पाया ,
कुछ लोग कहते है , बदसूरती का दूसरा नाम हूँ मैं ,
मगर जरा गौर फरमाइए ,
इन इठलाती शर्माती मनमोहक स्त्रियॉं की आंखो का काजल मैं ही तो हूँ ,
इन हँसते खेलते प्यारे प्यारे बच्चों को बुरी नजर से बचाने वाला मैं ही तो हूँ |
हाँ मैं कोयला हूँ ,
काला बदसूरत पत्थर का ढेला हूँ |

मैं इतना सुंदर  नही कि म्यूजियम में रखा जाऊँ ,
मैं इतना कीमती  नही कि पहरे में घिर जाऊँ,
मैं इतना दुर्लभ नही कि समुंदर कि गहराइयों मे खोजा जाऊँ ,
मैं इतना कठोर भी नहीं कि तलवार बनकर नरसंहार करवाऊँ |
मगर जरा गौर फरमाइए ,
ठंड कि रातों मे  ठिठुरते कंपकपाते मजदूरों राहगीरों कीअंगीठी का नगीना मैं ही तो हूँ ,
लाखों करोड़ों की भूख मिटाने वाला ,
चूल्हे मे जलकर रोटी पकाने वाला , मैं ही तो हूँ ,
हाँ मैं कोयला हूँ |
काला बदसूरत पत्थर का ढेला हूँ ||
हाँ मैं कोयला हूँ |
काला बदसूरत पत्थर का ढेला हूँ ||

Saturday, November 1, 2008

दीपक और अँधेरा

कहा अँधेरे ने बाती से ," तू क्या मुझको मारेगी ?
आदि -अंत न मेरा कोई , कब तक मुझको थामेगी ?

मै फैला हूँ तीन लोक में, मेरी आयु अनंत है
कौन भला इस जग में ऐसा, जो मुझसे स्वतंत्र है ?

देख जरा ये अपनी दुर्दशा , घुट -घुट कर तू जलती है .
लाचार और कमजोर तू कितनी , हर झोंके में हिलती है

भय आतंक है मेरे भाई , दुनिया मुझसे कंपती है
सब जाने हारेगी तू ही , फिर क्यों मुझसे लड़ती है ?

देख जरा तू सूख रही है , ख़त्म हो रहा तेरा तेल
घेर रहा हूँ मै अब तुझको , ख़त्म हुआ अब तेरा खेल "

मुख से कुछ न बोली बाती , बस खींची एक जोर की साँस
क्षण में बन गयी लौ से ज्वाला , अन्धकार न ठहरा पास

कोने-कोने भाग रहा वह ,पर नहीं कंही उसे ठौर मिला ,
शरण मांगता ,जगह ढूँढता अंत में दीये के नीचे आ छिपा

चरण चूमते अँधेरे को ,देख वो अब मुस्काई
"हे अजय-अमर! क्यों दुबक रहा तू ? कहाँ गयी अब तेरी छाया ?

सच है कुछ क्षण बाद , हवा के झोंक में मै बुझ जाऊंगी
पर जब तक प्राण है मेरे अन्दर , 'विजयी' मै ही कहलाऊंगी .

लक्ष्य नहीं मेरा तुझे मिटाना , न चिरकालिक मेरा आलोक है ,
मुझको साबित करना था बस , तू कितना डरपोक है ! "

Tuesday, September 16, 2008

raat ki raani - meri pahli kavita....

aaj raat fir vah mere paas aayegi ,
 dekh kar use ek ajeeb si behoshi chhayegi,
usake sparsh ko pakar sab kuchh bhula doonga mai,
us madhosh aalam me batti bujha doonga mai...

fir vah mujhe apni bahon me basa legi,
        mere har khwab ko haqeekat bana degi,
aankhon me honge khwab, our tamannaye dil me,
our vah hogi mere paas meri bahon me...

tanha chhod bistar pe subah ja chuki hogi vah,
 agli raat ke sapne dikha chuki hogi vah,
our nahi kar sakta us raat ko bayan,
agar karna bhi chahoo , to mere paas shabd hai kahan...

kabhi kabhi to class me bhi ho jaati hai unse mulakat ,
par kya karoo majboor hoo , professor bhi hote hai paas.
apni har ada se vah kar deti hai deewana,
par yaron kya karoo, bada muskil use bhool paana...

ab to mujhe aati hai bas usi ki yaad,
vo muskurata chehra , ek haseen raat.

mat pooncho vah rahti hai kahan,
kya hai uska kam?
mai to bas itna jaanu,
'Nidradevi' hai uska naam.